रुद्राक्ष क्या है, रुद्राक्ष कितने प्रकार के होते हैं? व रुद्राक्ष पहनने के लाभ

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रुद्राक्ष क्या है, रुद्राक्ष कितने प्रकार के होते हैं? व रुद्राक्ष पहनने के लाभ रुद्राक्ष धारण करने के नियम रुद्राक्ष धारण करने के लाभ मुखों के अनुसार रुद्राक्ष तथा उनके लाभ

रुद्राक्ष क्या है

रुद्राक्ष भगवान शंकर की एक अमूल्य और अद्भुत देन है। इसको पहन कर हम जहां आध्यात्मिक रूप से उन्नति कर सकते हैं। इसको पहन कर सांसारिक दुखों एवं बाधाओं से भी छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं। शिव पुराण, लिंग पुराण, पद्म पुराण तथा अन्य पुराणों एवं धार्मिक ग्रंथों में रुद्राक्ष की महानता का वर्णन किया गया है। रुद्राक्ष के पहनने के लाभ हम ऊपर दिए गए ग्रंथों के आधार पर आपकी जानकारी के लिए लिख रहे हैं। इसके साथ-साथ रुद्राक्ष की माला पहनने से ब्लड प्रेशर, ह्रदय रोग एवं भूत बाधा आदि रोग नहीं हो सकते। रुद्राक्ष पहनने वाले व्यक्ति की अकाल मृत्यु (दुर्घटना आदि) भी कभी नहीं होती। यह अकाट्य सत्य है।

रुद्राक्ष के प्रकार

मुख्य रूप से रुद्राक्ष 14 मुख तक होते हैं। मुखों के अनुसार विभिन्न रुद्राक्ष गले में डालने अथवा दाहिने बाजू पर बांधने से जो फल देते हैं इसका उल्लेख हम आगे कर रहे हैं। परंतु रुद्राक्ष पहनने से पहले यह अवश्य जांच कर लें कि रुद्राक्ष बिल्कुल ठीक है अथवा नहीं। क्योंकि आजकल बाजार में बनावटी रुद्राक्ष भी आ गए हैं। नीचे लिखे रुद्राक्ष किसी भी अवस्था में धारण ना करें।

(1) जो कीड़ों के खाए हों । (2) जो कांटों के बिना हों अथवा खंडित हों।

(3) जो छेद करते समय फट गए हो। (4) जो रुद्राक्ष का स्वरूप न रखते हो।

रुद्राक्ष धारण करने के नियम

(1) रुद्राक्ष धारण करने के 6 सप्ताह के भीतर जिस कार्य के लिए आप इसे धारण करेंगे वह कार्य हर हालत में होगा। ऐसा धार्मिक ग्रंथों का कथन है। एक मुखी, गौरीशंकर, तीन मुखी, पंचमुखी, सप्तमुखी, नौ मुखी तथा तरह मुखी रुद्राक्ष धारण करने से सब प्रकार के सुख, ऐश्वर्य, धन संपदा, आरोग्य तथा रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। वैसे तो कोई भी रुद्राक्ष धारण करें उससे लाभ अवश्य होगा।

(2) रुद्राक्ष अमूल्य वस्तु है। इसे कहीं से प्राप्त करके अथवा बाजार से मगवा कर किसी भी नदी के पवित्र जल या तीर्थ स्थान के जल से धोकर पांच बार “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का उच्चारण करके धारण करना चाहिए।

(३) सभी वर्ण रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं। भेद यही है कि द्विज मंत्र पाठ से और शूद्र बिना मंत्र के।

(4) धारण करते समय प्रणब के साथ “ॐ नमः शिवाय” का जप करना चाहिए तथा मस्तक पर भस्म लगानी चाहिए।

(5) सोने, तांबे अथवा चांदी के तारों से पिरो कर इस की माला धारण करनी चाहिए। लाल अथवा सफेद धागे में भी पिरोया जा सकता है।

(6) पुरुष यज्ञोपवीत, हाथ, कंठ अथवा उदार पर भी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।

(7) रुद्राक्ष भगवान शंकर के प्रतिष्ठित लिंग से स्पर्श कराकर धारण करना चाहिए।

रुद्राक्ष धारण करने के लाभ

(1) ग्रहण, विषुब, संग्राम, संक्रान्ति, अयन, अमावस्या, पूर्णमासी आदि पर्वों पर तथा पुण्य दिवसों में रुद्राक्ष धारण किए रहना चाहिए। इससे समस्त पापों से छुटकारा मिल कर विजय प्राप्त होती है।

(2) जो मनुष्य नित्य रुद्राक्ष पूजता है उसे राजा के समान यश और धन की प्राप्ति होती है।

(3) भूत आदि जो दुखदायक हैं वे रुद्राक्ष धारण करने वालों को कुछ दुख नहीं दे सकते। वरन रुद्राक्षधारी मनुष्य को देखकर दूर भागते हैं।

(4) धारक की 40 दिनों में कार्य सिद्धि होती है। अटूट श्रद्धा तथा विश्वास आवश्यक है।

(5) यदि मनुष्य 108 रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं तो प्रत्येक उन्हें क्षण अश्वमेघ यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है।

मुखों के अनुसार रुद्राक्ष तथा उनके लाभ

एकमुखी रुद्राक्ष

यह साक्षात भगवान शंकर का स्वरूप है। इससे भक्ति और मुक्ति दोनों की प्राप्ति होती है। इसके दर्शन मात्र से ही ब्रह्महत्यादिक पाप दूर हो जाते हैं। इसके धारण करने वाले के सर्व उपद्रव नष्ट होकर सर्व मनोरथ पूर्ण होते हैं। जिन्होंने एक मुखी रुद्राक्ष पा लिया उनके बड़े भाग्य हैं। वह प्रतिदिन पवित्र और पापों से शुद्ध है। यह परमतत्वा का प्रकाश है। इसे धारण करने से हृदय में परम तत्व का प्रकाश होता है। यह दुर्लभ रुद्राक्ष किसी-किसी भाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होता है।

द्विमुखी रुद्राक्ष

द्विमुखी रुद्राक्ष अर्धनारीश्वर रूप है। इसके धारण करने से तुरंत गौवध का पाप दूर होता है। और धारक के सर्व मनोरथ पूर्ण होते हैं। घर में सर्व सुख की सामग्री उपस्थित रहती है। यह मोक्ष और वैभव दाता है।

त्रिमुखी रुद्राक्ष

तीन मुखी रुद्राक्ष साक्षात् अग्नि का विग्रह हैं। इसके प्रभाव से ब्रह्म हत्या का पाप नष्ट हो जाता है। अर्थात यह तीनों अग्नियों का स्वरूप है। जो इसे धारण करता है उस पर अग्नि देव प्रसन्न होते हैं तथा धन और विद्या की वृद्धि होती है। इससे स्त्री हत्या का पाप दूर होता है। मुख्य रूप वह ज्वर जो तीन दिन के पीछे आता है। इसके धारण करने से नहीं रहता।

चतुर्मुखी रुद्राक्ष

चार मुख वाला रुद्राक्ष भगवान ब्रह्मा का स्वरूप है। इसके धारण करने वाला पुरुष महान धनाढ्य-आरोग्यवान और श्रेष्ठ माना जाता है। साथ ही इसके हृदय में ज्ञान की प्रचुर संपत्ति भर जाती है। इसे धारण करने से बड़ा आनंद प्राप्त होता है तथा शास्त्रानुसार मनुष्य-हत्या जीव-हत्या का पाप दूर होता है। इसके स्पर्श और अवलोकन से चारों पदार्थों की प्राप्ति होती है शुद्धि के लिए मनुष्य ऐसा रुद्राक्ष अवश्य धारण करें। दाहिनी बांह या शिखा में यह रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। ऐसा अग्नि पुराण में लिख अता है इससे अब्रह्मचारी भी ब्रह्मचारी और अस्नातक स्नातक हो जाता है।

पंचमुखी रुद्राक्ष

मुख वाला रुद्राक्ष कालाग्नि नामक रुद्र है। यह पंच ब्रह्मा स्वरूप माना गया है। इसके धारण करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं तथा भक्ति और मुक्ति की प्राप्ति होती है। इसके पास रहने से कोई दुख प्राणी को नहीं सताता। इस प्रकार के पाप और भक्षया-भक्ष्य के जो दोष हैं तथा परस्त्री भोग आदि के पाप हैं। इसके धारण करने से नष्ट हो जाते हैं। इसके तीन दाने धारण करने चाहिए।

छह मुखी रुद्राक्ष

छह मुख वाला रुद्राक्ष स्कंद के समान है। इसके अधिदेवता स्वामी कार्तिकेय हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि इसके प्रधान देवता गणेश हैं। इसके धारण करने से ब्रह्म हत्या आदि सभी पाप दूर होते हैं तथा सर्व प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। विद्या प्राप्ति के लिए यह श्रेष्ठ है। पुरुष को है यह रुद्राक्ष अपने दाहिने हाथ में धारण करना चाहिये।

सप्तमुखी रुद्राक्ष

सात मुख वाला रुद्राक्ष महाभाग अनंग है जिसको महासेन अनंतादि कहते हैं। इसके अधिदेवता सात मातृकायें सात अश्व और सप्त ऋषि भी हैं। इसको धारण करने से महान लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। पुरुष आरोग्य और आदर का पात्र बन जाता है। इससे निर्वल दरिद्र भी राजा के तुल्य हो जाता है। पुण्य आत्मा पुरुष इसे अवश्य धारण करें। यह कीर्ति और प्रतिष्ठा दिलाने वाला है। सोने की चोरी का पाप इसके धारण करने से नष्ट होता है।

अष्ट मुखी रुद्राक्ष

आठ मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात गणेश स्वरूप है। इसे बटुक भैरव का स्वरुप भी माना माना गया है। ऐसा पवित्र रुद्राक्ष गंगा को भी संतुष्ट करता है। इसे धारण करने से आयु बढ़ती है और अंत में शिवजी मुक्ति की कृपा करते हैं तथा सभी गुण धारक के लिए सुलभ हो जाते हैं। असत्यता के पाप से छुटकारा मिल जाता है तथा परस्त्री गमन तथा अन्न अदि की चोरी के पाप अदि भी नष्ट हो जाते हैं।

नवमुखी रुद्राक्ष

नौ मुख वाला रुद्राक्ष धर्मराज का स्वरूप है। शिव पुराण में इसे भगवती दुर्गा का स्वरूप माना गया है। कुछ साधकों के मत के अनुसार इसे भैरव का रूप भी माना जाता है इसके धारण करने से किसी प्रकार का भी यमराज का भय नहीं रहता। इसके धारण करने से सभी पापों से मुक्त होकर धारक सुख भोगता है। इसको दाहिनी या बाई दोनों ही भुजा में धारण करने के लेख मिलते हैं।

दस मुखी रुद्राक्ष

दस मुख वाले रुद्राक्ष के प्रधान देवता साक्षात भगवान जनार्दन एवं दसों दिग्पाल कहे गए हैं। इससे धारक के सर्व कार्य सिद्ध होते हैं और यह किसी के मारे नहीं मरता तथा दसों दिशाओं का प्रेम भाजन बन जाता है इसमें कोई संदेश नहीं। इससे सभी ग्रह शांत होते हैं तथा पिशाच बेताल, ब्रह्मराक्षस सर्प आदि का भय नहीं रहता। ग्रहबाधा के कारण भाग्य साथ नहीं देता हो तो इसे अवश्य धारण करना चाहिए।

एकादश मुखी रुद्राक्ष

ग्यारह मुख वाला रुद्राक्ष भगवान शंकर की ग्यारह रुद्रों की प्रतिमा होता है। कुछ साधक इन्द्र को भी इसका प्रधान देवता मानते हैं। इसके धारण करने से सदा सुख की वृद्धि होती है तथा पहनने वाला सब को जीतने वाला बन जाता है। इसको शिखा में धारण करने से हजारों अश्वमेध यज्ञों का फल मिलता है तथा चंद्र ग्रहण में जो दान करने का फल होता है वह प्राप्त होता है। भाग्यवृद्धि, धन वृद्धि, तथा भगवान शंकर की कृपा पाने के लिए सर्वोत्तम माना गया है। दुर्लभ रुद्राक्ष है। सभी प्रकार की मनोकामना सिद्ध के लिए धारण करें।

द्वादशमुखी रुद्राक्ष

बारह मुख वाला रुद्राक्ष भगवान विष्णु का स्वरूप है। इसके देवता बारह सूर्य हैं। इसके शिखा में धारण करने से सभी रोग दूर होते हैं तथा दोनों लोकों में सुख की प्राप्ति हो कर सदा भरण पोषण को प्राप्त होता है। इसे कानों में धारण करने से गौ हत्या-मनुष्य हत्या तथा रत्नों की चोरी का पाप दूर होता है। अग्नि तथा चोर आदि का भय नहीं रहता। यदि दरिद्र ऐसे इसे धारण करें तो वह भी धनवान हो जाता है तथा हिंसक पशु धारक को बाधा नहीं पहुंचा सकते।

त्रयोदशमुखी रुद्राक्ष

तरह मुखी रुद्राक्ष सभी प्रकार की मनोकामना सिद्ध करने वाला है। इसके धारण करने से धन, यश तथा मान की प्राप्ति होती है। हर मनोकामना की पूर्ति होती है। मनचाहे स्त्री-पुरुष को अपनी ओर आकर्षित करने की शक्ति देता है। नि:संतान को संतान निर्धन को धन प्रेमी को प्रेमिका तथा हर सांसारिक मनोकामना पूर्ति का एकमात्र साधन हैं।

चतुर्दश मुखी रुद्राक्ष

चौदह मुख वाला रुद्राक्ष स्वयं भगवान शंकर के नेत्र से प्रकट हुआ है। इसे हनुमान जी का स्वरूप भी माना जाता है। सौभाग्य से अगर यह मिल जाए तो इसे ललाट पर धारण करना चाहिए। इसके धारक को कोई कष्ट नहीं हो सकता। तथा सभी पापों से तुरंत छुटकारा मिल जाता है। सभी व्याधियां शांत हो जाती हैं तथा आरोग्यता की प्राप्ति होती हैं।

गौरी शंकर रुद्राक्ष

गौरी शंकर रुद्राक्ष भगवान शंकर और भगवती पार्वती का स्वरूप माना जाता है। घर पूजा गृह अथवा तिजोरी में मंगल कामना सिद्धि के लिए रखना लाभदायक है। जो व्यक्ति एक मुखी रुद्राक्ष प्राप्त करने में असमर्थ हों उनके लिए उत्तम है।

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